अनंत धारा की ओर से आप सभी को प्रणाम।
अनंत धारा एक रास्ता एक यात्रा एक कभी न खत्म होने वाली धारा का प्रवाह है,
जिसका न कोई आरंभ और न ही अंत। अनंत धारा एक ऐसा शब्द है जो सर्व को अपने भीतर में समेटे हुए है।
इस मंच का उद्देश्य आप सभी को स्वस्थ और धरती माँ को सुंदर और धरती माँ के सभी जीवों को खुशहाल बनाये रखना है
इसके लेखो द्वारा सिर्फ यही बताया गया है कि हम जीवन के सही मूल्यों को कैसे पहचान सकते है, अपने आप को कैसे स्वस्थ रख सकते है, पर्यावरण को दूषित होने से कैसे बचा सकते है और कैसे दूसरे जीवो की मदद कर सकते है।
अनंत धारा किसी एक व्यक्ति की विचारधारा नही है बल्कि हम सबकी की जीवन जीने की राह है। हम इस जीवन को सही ढ़ंग से कैसे जी सकते है।
हमारे महा उपनिष्द में एक श्लोक है
अयं निजः परो वेति गणना लघुचेतसाम्।
उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्॥
जिसका अर्थ है
यह मेरा है यह पराया है, ऐसा सिर्फ छोटे ह्रदय वाले ही सोचते हैं। उदार ह्रदय व्यक्ति इस सारे जगत इस सम्पूर्ण धरती को ही अपना परिवार मानता है। इस धरती माँ के सभी जीवो को अपने परिवार जनो की तरह ही स्नेह करता है।
जैसे हम अपने परिवार के सभी सदस्यों का ध्यान रखते है, उनकी मद्दद करते है, उनके प्रति संवेदना व प्रेम का भाव रखते है ; उसी प्रकार हमें इस सम्पूर्ण धरती को अपना एक परिवार मान उसके सभी जीवो का ध्यान, संवेदना व प्रेम भाव रखना चाहिए। किसी के प्रति ऊंच नीच का भाव नही रखना चाहिए।
इस सृष्टि में सब कुछ पंच तत्वों ( धरती ,जल, वायु, अग्नि और आकाश ) से ही निर्मित है। हम सब इन्ही पांच तत्वों से निर्मित हैं। हम सब एक ही धरती माँ पर एक ही जल ग्रहण करते है, एक ही वायु में श्वास लेते है, ऊर्जा के रूप में एक ही अग्नि हम सब के भीतर प्रज्जवलित है और ये सारा आसमान हम सभी जीवो को एक सामान ढके हुऐ हैं।
हम सब एक ही सूर्य से प्रकाशमान है, ये सृष्टि भेद नहीं करती तो हम क्यों भेद करते है। हम क्यों अमीर गरीब छोटा बड़ा करते है, क्यों अन्य जीव-जन्तुओ, पेड़ -पौधों को अपने से तुच्छ समझते है।
हम सब एक ही ईश्वर की संताने है, उसने हम सभी जीवो को अलग अलग रूपों में इसीलिये बनाया है कि ये पृथ्वी सुन्दर दिख सके, सभी अपने अपने रूपों के अनुसार भिन्न-भिन्न कार्य कर सके। सभी अपने अपने रूपों से इस धरती को सजा सके।
आप अपने शरीर को देखिये क्या इस शरीर में सभी अंग एक समान है उसका उत्तर है नहीं क्योंकि अगर सभी अंग एक जैसे हो जायेगे तो आप कुछ भी नहीं का पाएंगे
आप के शरीर का हर अंग अलग कार्य करता उसका अपना एक अलग महत्व है
जो आपके हाथ कर सकते है वो पैर नहीं कर सकते और जो पैर कर सकते है वो हाथ नहीं कर सकते हमारे शरीर का हर अंग महत्वपूर्ण है अगर वो सब अंग अच्छे से काम करे तभी हम सवस्थ रह सकते है
उसी तरह हम सभी जीव इस धरती माँ के अंग है हम सभी जीवो का अलग अलग महत्व है जैसे पेड़ पौधे हमें ऑक्ससीजन देते है और हम उन्हें कार्बन डाईऑक्साइड देते है तो हम सभी को अपने कर्त्तव्य को पूर्ण निष्ढा और ईमानदारी से निभाना चाहिए कभी किसी से घिर्णा नहीं करनी चाहिए
उदहारण के तोर अगर आपके के शरीर के हाथ आपके के शरीर के पैरो से घिर्णा करे और कहे की ये पैर तो सदैव गदंगी में रहते है ये तो बहुत ही नीच है तो क्या यह सही होगा क्योकि आप बिना पेरो के नहीं चल सकते |
तो इसी तरह इस धरती पर कोई भी जीव निम्न नहीं है सभी का अपना एक अलग महत्व है वह अपने कार्य को भली भांति कर रहे है
तो हर जीव का समान करे
हर जीव से प्रेम करे
हर जीव की मदद करे
हर जीव की विकास और उन्नति मे सहायक बने
क्योकि हम सभी इस धरती माँ के अंग है
भगवद् गीता के अध्याय 5 श्लोक 18 में इसका वर्णन है
विद्याविनयसंपन्ने ब्राह्मणे गवि हस्तिनि।
शुनि चैव श्वपाके च पण्डिताः समदर्शिनः।।5.18।।
इस श्लोक का अर्थ है कि विद्या और विनय से सम्पन्न ब्राह्मण, गाय, हाथी, कुत्ता व चाण्डाल को ज्ञानी महापुरुष समभाव से देखता है।
अर्थात जिस ज्ञानी पुरुष को इस सृष्टि के एक ईश्वर और उसकी सृष्टि का ज्ञान है, वह जानता है कि इन सब को एक ही ईश्वर ने निर्मित किया है, और उन सब का अपनी अपनी जगह पर महत्व है। जैसे फूलो को और काँटों को बनाने वाला एक ही ईश्वर है उसी तरह से ब्राह्मण, गाय, हाथी, कुत्ता व चाण्डाल को एक ही ईश्वर ने बनाया है।
अंनत धारा आप सभी से यही निवेदन करेगी कि आप सभी प्रेमपूर्वक समभाव से इस धरती माँ पर रहे और इसके जीवो को एक समान दृष्टि से देखे।
आप सब का बहुत बहुत धन्यवाद।