क्या आपको लगता है आप सब देख सकते अपनी दोनों आँखों से जो आपके सामने होता है या आप सब अनुभव कर सकते जो आपके आस पास हो रहा है इसका जवाब है नहीं क्योकि आप इस बाहरी दुनिया में वही देख सकते है जो आपके अंदर होता है यहाँ कुछ भी असली नहीं है बस वैसा है जैसे आप देखना चाहते है यहाँ सब कुछ एक जैसे है सब बहुत समय से घट रहा या कहु धरती के आरम्भ से वही चाँद और सूरज वही तारे वही असमान वही पेड़ पौधे वही चार मौसम वही दिन और रात वही सुबह और शाम वही फूलो का खिलना और मुरझाना वही कल का कभी न आना वही लोगो का इस दुनिया में आना और जाना वही मिल कर फिर बिछड़ जाना।
यहाँ कुछ नहीं बदलता बस बदलते है तो सिर्फ हम हमारे भाव हमारी सोच क्योकि हमे वही दिखाई पड़ता है जैस हमारे भीतर होता है कभी अपने अनुभव किया है जब आपको भूख बहुत तेज लगी होती है तो आपको हर जगह खाना की तलाश रहती है जब आपको पानी की प्यास लगती है तो आपको पानी की तलाश होती है जब आप दुखी होते है तो आपको कुछ भी अच्छा नहीं लगता बेशक बहार कितना भी अच्छा दिन निकला हो कोई भी चीज़ इस दुनिया में आपको अच्छी नहीं लगती जब आप भीतर से दुखी होते है पर जब आप खुश होते है तब सब अच्छा लगता है बेशक दिन कैसा भी हो आप उसका आनंद लेंगे।
ये सब कुछ मन के भावों का खेल है आपके मन के अंदर असंख्य भाव है या ऐसे समझिये मन एक समंदर की तरह है जिसमे भावो की असंख्य लहरें हर क्षण उठती रहती है और ये मन रूपी समंदर हमारी पांच इन्द्रियों से जुड़ा है हर इंद्री अपनी तरह से मन के समन्दर में भाव रूपी लहरों को उठाती है इस से ही हम हर भाव को अनुभव करते है
बहार जो भी है वो आपके अन्दर से ही जुड़ा है आप जैसा अपने भीतर में अनुभव करते है वैसा ही बहार पाते हैं इस जगत में रोज आपके जीवन में आपकी आँखो के सामने हजारों या लाखों चीज़े गुज़रती है पर आपको सिर्फ वही दिखाई पड़ता है जो आपके भीतर होता है बाकि सब चीज़ो को आप का दिमाग नजरअन्दाज कर देता है
हम असल में इस ब्रह्मांड में एक छोटे से कण हैं और इस कण के भीतर एक पूरा ब्रह्मांड छिपा है